Search This Blog

Wednesday, February 3, 2010

Childhood

ये दौलतभी लेलो, ये शोहरतभी लेलो
भले छीनलो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटादो बचपनका सावन
वो कागझकी कश्ती, वो बारिशका पानी

मुहल्लेकी सबसे निशानी पुरानी
वो बुढिया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानीकी बातों में परियोंका डेरा
वो चहेरेकी झुर्रियोंमें सदीयोंका फेरा
भुलाये नहीं भुल सकता है कोइ
वो छोटीसी रातें, वो लम्बी कहानी

कडी धूपमें अपने घरसे निकलना
वो चिडिया वो बुलबुल वो तितली पकडना
वो गुडियाकी शादी पे लडना झगडना
वो झुलों के गिरना वो गिरके संभलना
वो पितल के छल्लों के प्यारे से तोहफे
तो तुटी हुइ चुडियोंकी निशानी

कभी रेतके उंचे टिलों पे जाना
घरोंदे बनाना बनाके मिटाना
वो मासुम चाहतकी तसवीर अपनी
वो ख्वाबों खयालोंकी जागिर अपनी
न दुनियाका गम था न रिश्तोंका बंधन
बडी खूबसुरत थी वो झिंदगानी

No comments:

Post a Comment