उलफत का जब किसी ने लिया नाम रो पड़े
अपनी वफ़ा का सोच के अन्जाम रो पड़े
हर शाम ये सवाल मुहब्बत से क्या मिला
हर शाम ये जवाब के हर शाम रो पड़े
राह-ए-वफ़ा में हमको खुशी की तलाश थी
...दो गाम ही चले थे के हर गाम रो पड़े
रोना नसीब में है तो औरो.न से क्या गिला
अपने ही सर लिया कोई इल्ज़ाम रो पड़े
सुदर्शन फाकिर
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